गुरुवार, सितंबर 4

बेचारी बहस और बेमानी बहसिए

वे अपनी ही रौ में कहते जा रहे थे और उनके साथ शामिल लोग उनकी बात को काटने में लगे हुए थे। इन सब को एक साथ जूझते देख कुछ-कुछ चांव-चांव या कांव-कांव या फिर हुंआ-हुंआ का भाव आ रहा था। बहरहाल बीस मिनट बीत जाने के बावजूद भी पता नहीं चल पाया कि आखिर रार किस मुद्दे पर मची हुई है। दरअसल लाख आलोचनाओं के बावजूद समाचार चैनलों पर बहस के लंबे-लंबे उबाऊ कार्यक्रमों पर न तो रोक लग रही है और न ही उसके घिसे-पिटे फार्मेट में कोई बदलाव लाने की कोशिश हो रही है। यह कहना गलत न होगा कि बेतुकी और बे- सिर-पैर की बात करने वालों की बढ़ती फौज का फायदा उठाने में लगे समाचार चैनल महज समय बिताने के नाम पर ऐसे कार्यक्रमों की होड़ में शामिल हो चुके हैं। उन्हें इस बात से कोई लेना-देना नहीं होता कि उनका अपना हम-दम दर्शक इन बकवास मुद्दों (अधिकांशत:) पर होने वाली बेचारी बहसों और बेमानी बहसियों से ऊब सी गई है। कभी-कभी तो लगता है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया  इण्डस्ट्री ही एकमात्र ऐसी इण्डस्ट्री है, जिसे अपने उपभोक्ताओं की कोई परवाह नहीं है, वरना ब्रैण्डिंग और पैकेजिंग के इस समय में हर उद्योग अपने उपभोक्ता को सिर-माथे पर रखकर साथ निभाने के दबाव में नजर आ रहा है।
अब पिछले दिनों को ही लीजिए, पहले सरकारी सूत्रों के हवाले से यह खबर प्रसारित की गई कि केन्द्र सरकार पांच लोगों को भारत रत्न दिए जाने की तैयारी कर रही है। कई चैनलों ने उन नामों पर भी कयास लगा डाले जिन्हें भारत रत्न दिया जा सकता है या उनकी नजर में वे इसके हकदार हैं। नामों का चयन तमाम चैनलों में बैठे तथाकथित मीडिया अलम्बरदारों ने सत्ताधारी पार्टी लाइन के आधार पर तय कर दिए। कयासों पर सरकारी मुहर लगती कि इससे पहले ही उन नामों को बेमानी बहसिओं के हवाले कर दिया गया और फिर शुरू हो गया  चांव-चांव, कांव-कांव, हुंआ-हुंआ का दौर। हर कोई अपने-अपने हिसाब से भारत रत्नों की खोज कर रहा था और उन्हें बिना सोचे-समझे बहस में शामिल कर ले रहा था। किसी को इस बात की चिंता नहीं थी कि देश के जिन सपूतों को ये सब भारत रत्न देने की मांग के साथ अपनी बेचारगी से लथपथ बहस में शामिल कर रहे हैं, वे अपने देश की जनता के दिल और दिमाग में क्या जगह रखते हैं। चैनलों ने भी इन सपूतों के नामों को इन बेमानी बहसिओं की लपालप चलती बेमानी जुबानों पर आने देने में कोई बुराई नहीं समझी। बहस में भारत रत्न के हकदारों में हनी सिंह भी शामिल हो गया। अब आप इस दुर्गति को क्या कहेंगे।
एक चैनल को 'हिन्दी, हिन्दुस्तान और हिन्दूÓ का जुमला भा गया और उसने इस पर बहस करने के लिए आरोप-प्रत्योरोप में माहिरों को जुटाकर जो बहस कराई, वह किसी साम्प्रदायिकता फैलाने वाले कार्यक्रम की तरह ही लगी। जनाब एंकर महोदय लगातार अपने चहेते बेमानी बहसिओं को उकसाते नजर आए कि वे आपसे में तो भिड़ें ही साथ में ऐसा कुछ बोलें कि आम जनता भी आपस में भिड़ जाए। इसी तरह नेताओं के संसद से गायब रहने वाली बहस ने नेताओं को अपने दायित्वों को निभाने से वाकओवर सा दे दिया। इस बहस को देख-सुन कर ऐसा लग रहा था कि यह बहस संसद से गायब रहने का आरोप झेल रहे सांसदों की ओर से प्रायोजित की गयी हो। वैसे 'पेड न्यूजÓ और 'पेड व्यूजÓ का आरोप झेलने वाली मीडिया के लिए नया नहीं है। पहले भी कई बार इस तरह का आभास मिलता रहा है कि खबरिया चैनल प्रायोजित मुद्दे पर प्रायोजित बहसिओं को लेकर बेमानी बहस कराने में जुटे हैं।
बेचारे खबरिया चैनल। इन दिनों सुबह से ही इस बात में जुट जाते हैं कि आज शाम किन मुद्दों पर बहस हो सकती है और इन मुद्दों पर कौन लोग बात रख सकते हैं। हर चैनल के पास दो-तीन समाजशास्त्री, दो-तीन अर्थशास्त्री, दो-तीन विधि विशेषज्ञ और दो-तीन साहित्यकार टाइप के लोगों की फेरिस्त तैयार रहती है। राजनीतिक पार्टियों के प्रवक्ताओं या फिर टेलीविजन बहसों में शामिल होने के लिए नामित नेताओं की फेहरिस्त भी पास में होती है। चैनलों में एक पूरी टीम होती है इन लोगों को आमंत्रित करने या फिर उन्हें बहस के दौरान कनेक्ट करने की। कई बार तो बहसिओं से राय-मश्विरा करके ही विषय का टयन होता है या फिर विषय को अंतिम रूप दिया जाता है। साथ ही इस बात की कोशिश की जाती है कि विषय ऐसा हो, जिसमें विषय से इतर जाकर आरोप-प्रत्यारोप लगाने और आंय-बांय शांय बकने की भरपूर गुंजाइश हो।
फिलहाल 'शर्म उन्हें आती नहींÓ कहकर ही काम चलाने वालों की बड़ी फौज होने के कारण बेचारी बहसों और बेमानी बहसिओं का दौर जारी है। ऐसी कोई नियामक संस्था ही नहीं है जो खबरिया चैनलों पर आयोजित या फिर प्रायोजित होने वाली इन बहसों में कहे जाने वाले 'वाक्योंÓ को स्वयं ही संज्ञान लेकर कोई कार्रवाई करे या फिर दिशा-निर्देश दे सके। हां, एक खबर कुछ भरोसा दिलाती है या फिर संशय में डालती है कि आने वाले दिन सुधार के हो सकते हैं या फिर मीडिया पर नकेल कसे जाने के हो सकते हैं। और खबर यह है कि देश के सूचना प्रसारण मंत्री ने कहा है कि एफएम रेडियो पर रेडियो जॉकी किसी का मजाक नहीं उड़ा सकेंगे। उन्होंने इन रेडियो पर प्रसारित होने वाले कंटेंट पर भी निगरानी रखने की बात कही है। तय है कि जल्दी ही इन बहसों के लिए भी मानक बनाए जाएं। अगर ऐसा होता है तो यह खबरिया चैनलों के उपभोक्तोओं के लिए बेहतर खबर होगी।