सोमवार, फ़रवरी 16

...और अब ‘मोबाइल’ पर निबंध व साहित्य का जमाना


आज से पैंतीस साल पहले जब मैं दसवीं क्लास का छात्र था तो मुझे ‘मेरा प्रिय अखबार’ पर निबन्ध लिखने को दिया गया था और मुझे याद है कि मैंने अपने अखबार की ढेर सारी खूबियां गिना डालीं थीं। मसलन मेरा अखबार देश-दुनिया की खबरें देता है, नॉलेज बढ़ाता है, नई-नई इनफॉर्मेशन देता है, नई फिल्मों के बारे में बताता है, साहित्य पढ़ाता है, घूमने की जगहों से परिचित कराता है,  बेरोजगारों को नौकरी पाने की राह बताता है, कुंवारों की जोड़ी बनाने में हेल्प करता है आदि-आदि। तीस साल बाद मेरे बेटे के स्कूल में ‘माय डियर मोबाइल’ पर निबंध लिखने को मिला है और मेरे लिए यह आश्चर्य से कम नहीं कि वह मोबाइल की लगभग वैसी ही खूबियां गिना रहा है, जैसी मैंने अपने अखबार की गिनायीं थीं। बड़ी बात यह कि न मैं तब गलत था और न वह अब।
मेरे बेटे ने कुछ इस तरह मोबाइल की खूबियां गिनायीं। ‘माय डियर मोबाइल’ देश-दुनिया की खबरें देता है, नई-नई इनफॉर्मेशन देता है और पलक झपकते उन्हें अपडेट कर देता है, नई फिल्मों के बारे में ही नहीं बताता, बल्कि उन्हें दिखाता भी है, पापा को शेयर बाजार से जोड़े रखता है, क्रिकेट के स्कोर से अपडेट करता है, बेरोजगारों को नौकरी पाने की राह ही नहीं बताता, उन्हें नौकरी दिलाता भी है, कुंवारों की जोड़ी बनाने में हेल्प भी करता है। रेल और प्लेन के सम्बन्ध में इनफॉर्मेशन देता है। हमारा भविष्य बांचता है और हमें बेहतर लाइफ स्टाइल के टिप्स देता है। बड़ी बात यह कि माय डियर मोबाइल रेडियो, टेलीविजन के साथ-साथ अखबार की तरह भी हमारे साथ रहता है। उससे भी बड़ी बात यह कि इसने हमारे रिश्तदारों और दोस्तों के बीच होने वाली चिट्ठी-पत्री की जगह ले ली है। माय डियर मोबाइल कैमरे की तरह काम करता है और हमसेे सिटीजन जर्नलिस्ट की तरह काम भी करा लेता है। माय डियर मोबाइल मुझे इंटरनेट से भी जोड़ देता है। आदि-आदि।
‘माय डियर मोबाइल’ में मुझे यह भी पढऩे को मिला कि मंहगी और मंहगी होती दुनिया में एक पैसे की बात कहीं हो रही है तो वह मोबाइल की ही दुनिया है। मजेदार बात यह कि जब हम एक पैसे के मायने और अहमियत भूल चुके थे तब मोबाइल ने हमें उससे जोड़ दिया है। एक पैसे में एक सेकण्ड बात का फण्डा कारगर हुआ है और एक नये पैसे की याद ताजा हो उठी है। काश! वह एक नये पैसे का सिक्का अपने पास होता और मैं ‘माय डियर मोबाइल’ निबंध में इस फण्डे का जिक्र कर रहे अपने बेटे को वह दिखा पाता। फिलहाल मोबाइल ने अनायास ही मेरे बेटे और उसकी पीढ़ी के साथ-साथ आगे-पीछे की कई पीढिय़ों को एक-एक पैसे की अहमियत जता दी है। रूपयों के हिसाब के प्रति गैर-जिम्मेदार ये पीढिय़ां कम से कम एक-एक पैसे के प्रति जिम्मदार होती नजर तो आने लगी हैं।
चलते-चलते एक खबर यह भी कि अखबारों की तरह ही मोबाइल पर भी साहित्य की धमक सुनाई देने लगी है। मेरे एक मित्र आजकल अपनी कविताएं मोबाइल पर लिख रहे हैं और उन्हें लगातार अपने मित्र मंडली को मैसेज के जरिए भेज भी दे रहे हैं। पिछले दिनों एक महाशय ने पूरी महाभारत की कहानी ट्विटर के जरिए कह डाली। एक सज्जन मोबाइल पर उपन्यास लिख रहे हैं तो एक ने लघु कथाएं लिखना शुरू कर दिया है। जाहिर है कि आने वाले दिनों में मोबाइल साहित्य विमर्श के जानकार और आलोचकों की जरूरत पड़ सकती है। तैयार रहिए।