सोमवार, अप्रैल 22

कोऊ नृप होय, हमें का हानि


गद्दी खाली थी। कई बरसों से खाली थी। परम रानी का शासन था, जिस अपने अलावा कोई और राजा का होना पसंद ही नहीं था। सत्ता बदली। परम रानी गई और परम राजा का शासन आ गया। उधर सत्ता बदली और इधर खाली पड़ी गद्दी पर लोगों की निगाह लग गई। कई की लार टपकने लगी। दावेदारी ठोंकी जाने लगी। परम दरबार में फेरा लगने लगा और दरबारी होने का दावा ठोंका जाने लगा। परम राजा के पास नामों की झड़ी लगी तो एक लम्बी फेहरिस्त ही तैयार हो गई। राजा बनने की होड़ में शामिल लोगों की फेहरिस्त बार-बार दोहराई जा रही थी और हर बार कोई न कोई नया नाम जुड़ जा रहा था। राजा बनाने वाले परम राजा के सामने असमंजस था कि किसे राजा बनाए और किसे नहीं। परम्पराएं और फेहरिस्त का दबाव उसे परेशान किए हुए था। कोई जाति का आधार देकर दावा ठोंक रहा था तो कोई धर्म और भाषा की अल्पसंख्यकता का हवाला देकर दबाव बनाने में लगा हुआ था। एकाएक नया फार्मूला सामने आया और राजा ने उसे तत्काल आयात कर लिया और एक तथाकथित 'बाहरीÓ गद्दीनशीं कर दिया गया। फेहरिस्त में शामिल लोग सीना पीट-पीट कर स्यापा करने लगे।
जब चौबीस नामों वाली फेहरिस्त अखबार वाले छाप रहे थे, तब एकमत होकर किसी एक का नाम देने से गुरेज करने वालों को रोते देख मजा आ रहा है। राजा मस्त है कि आपस में लड़ाई का मजा तो बाहर वाले ही उठाते हैं, सो उसके हिस्से में यह मजा अपने आप ही आ गया। जय हो राजा बनाने वाले की। राजा नई-नई घोषणाएं कर रहा है और स्यापा कमेटी परम राजा के दरबार में गुहार लगाने की जुगत भिड़ा रही है। इतिहास गवाह है कि राजा बनाने के खेल में जो जीता वही सिकंदर चलता है। जनता के दबाव में निर्णय बदलने की परम्परा तो है, लेकिन इसका निर्वहन करने के लिए वर्तमान राजा का कार्यकाल खत्म होने का इंतजार करना पड़ेगा। लोकतंत्र है भाई। अगली बार का इंतजार करें। आपको राजा बदलने का मौका अवश्य मिलेगा।
एक मजेदार बात यह कि 'आग लगाकर जमालो बीबी तमाशा देखेंÓ वाली कहावत चरितार्थ होते दिख गई। अब देखिए न पहले तो साथ देने का वादा किया कुछ बड़ों ने और फिर राजघराने से सम्बन्ध बिगडऩे के डर से वे भाग खड़े हुए। बेचार स्यापा करने वाले जिनकी अगुवाई में लड़ाई लडऩे का मन बना रहे थे, उनके साथ छोड़ देने से सकते में आ गए, लेकिन वाह रे जज्बे, उसने साथ नहीं छोड़ा और मैदान में जंग की गूंज अभी भी सुनाई दे रही है। इधर नए राजा ने भी बड़ी ही चतुराई से कई लोगों को अपने पक्ष में करने की जुगत भिड़ा ली। पिछले राजाओं से जिन्हें कुछ नहीं मिला वे नए राजा की जय-जयकार करने में लग गए। इस उम्मीद पर कि शायद नया राजा अपने गाढ़े समय में उनका साथ पाकर गदगद हो जाए और उन्हें राजा का दरबारी होने का मौका दे दे। बहरहाल अभी भी बहुत से ऐसे लोग हैं, जिन्हें राजा के बदलने और न बदलने से कोई फर्क नहीं पड़ता। जब राजा और प्रजा के रिश्तों में मिठास न हो, जब यह पता हो कि राजा उनके लिए कुछ करेगा ही नहीं, जब पता हो कि राजा के पास केवल वही होंगे जो राजा की जय-जय बोलते रहेंगे, जब पता हो कि राजा उनके कर्म का सहभागी नहीं होगा....तो फिर कोऊ नृप होय, हमें का हानि।
बहरहाल जिनका नाम फेहरिस्त में था, वे सब के सब सदमे में हैं कि परम राजा के प्रसादपर्यन्त राज्य मंत्री का दर्जा हासिल करने से वे क्योंकर चूक गए। लाल बत्ती का सुरूर कितना मजेदार होता है, इसका स्वाद चखते-चखते रह गए। नया राजा जो बयान दे रहा है, वह भी कचोट रहा है। नया राजा यह बता रहा है कि उसने कौन-कौन से तीर मारे हैं तब जाकर परम राजा ने उस राजा होने का गौरव दिया है। वह परम राजा के कसीदे पढ़ रहा है और स्यापा करने वाले बिलबिला जा रहे हैं। कसीदे तो वे भी पढ़ सकते थे। यह तो केवल 'मंचीयÓ कसीदे पढ़ रहा है, हम तो किताबों में दर्ज होने लायक 'गंभीरÓ कसीदे पढ़ सकते थे। हाय, फिर हम कैसे चूक गए। अब चूक गए तो चूक गए। बहरहाल बेमानी लड़ाई लडऩे में माहिर लोग भी इस स्यापा कमेटी में शामिल हो गए हैं और अब यह कई बरस तक इस लड़ाई को ढोते रह जाएं तो कोई आश्चर्य नहीं। बहरहाल लड़ाई लडऩे वाले अपने हैं सो उन्हें लड़ाई जीत लेने की ढेर सारी शुभकामनाएं।