बहरहाल पानी के लिए हाय-तोबा करते देख इलाके के एक समाज सेवी टाइप के नेता ने हमें बड़ी लानत-बलानत भेजी। हमें हमारी पानी को लेकर पैदा हुई संकुचित सोच के लिए बहुत कोसा। कहा कि जब सारा देश भ्रष्टाचार के खिलाफ मोमबत्ती जलाकर एकजुटता दिखा रहा है तो तुम पानी के लिए दिल जालाकर अलग-थलग पड़े हुए हो। अरे पानी तो रोज नहीं आता। इसमें नया क्या है। भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन नया है। ऐसा मौका बार-बार नहीं आता। फिर टीवी वाले तुम्हारे आंदोलन को नहीं दिखायेंगे। सोच के स्तर पर ऊपर उठो। थोड़ा सा राष्ट्रीय हो जाओ। तुम पानी के लिए चिल्लाने के लिए नहीं बने हो।
अपनी बड़ी सोच की बातों के बीच वे यह कहने से भी नहीं चूके कि पानी की समस्या तो रहीम जी के जमाने से है। वे भी पानी बचाने और सहेजने के लिए चिल्लाया करते थे। अरे जब रहीम जी की नहीं सुनी गयी तो तुम्हारी कौन सुनेगा। लिहाजा तुम्हारा पानी पाने और पानीदार होने का आंदोलन बेमानी है। और फिर पानी के लिए चिल्ल-पों मचाने का एक स्टेटस होता है। अरे जिस पानी के लिए प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, जल संसाधन मंत्री, कई-कई आयोग, वैज्ञानिक वगैरह-वगैरह चिल्ला रहे हों तो आप चिल्लाकर क्या पा लेंगे। जनाब, जिस पानी के लिए चिल्लाते-चिल्लाते कई पीढिय़ां गुजर गयीं और जिसके नाम पर करोड़ों बहा दिये गये उसके लिए अपनी ऊर्जा खपाने से कुछ हासिल नहीं होगा। भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन में शामिल हो जाइये। कुछ नहीं हुआ तो कम से कम आप टीवी पर दिख जायेंगे, आपको लोग पहचानेंगे और आपके जागरूक होने पर मुहर लग जायेगी।
अब हम उन्हें कैसे समझाते कि भ्रष्टाचार तो हमारी रगों में समा सा गया है। उससे निजात पाने के लिए भी कई-कई पीढिय़ां इंतजार करती रह जायेंगी। रही बात पानी की तो वह हमारी रगों से ही गायब होता जा रहा है। .. ..कहां से लायेंगे हम पानीदार पीढिय़ां।
(हिन्दुस्तान के इलाहाबाद संस्करण में प्रकाशित)
1 टिप्पणी:
behtareen ! taza aur zayekedar rha ise padhna ...!
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