शनिवार, जनवरी 19

कुंभ में सीखिए लाइफ मैनेजमेंट का फण्डा


धनंजय चोपड़ा
दुनिया का सबसे बड़ा कहा जाने वाला मेला सज चुका है। वह मेला जहां, भारतीय संस्कृति चमक  रही है-दमक  रही है और पूरे विश्व को अपने भीतर समेट लेने की क्षमता को दिखा रही है। वह मेला, जहां धर्म आकाश के सभी सितारे गंगा-यमुना के संगम तट पर बिखरी रेत को जीवंतता देने के लिए उपस्थित हो चुके हैं। वह मेला,जहां मंत्र गूंज रहे हैं और मार्केट के फण्डे भी। वह मेला जहां धर्म सत्ता है तो राज सत्ता भी। वह मेला, जहां करोड़ों लोग जीवन की तमाम दुश्वारियों को हाशिए पर रखते हुए लाइफ मैनेजमेंट के कारगर फण्डों से हमारा सामना कराते मिल जाते हैं। सच तो यह है कि कुंभ में  सामाजिकता की ऐसी प्रोफाइल हमारे सामने है कि हम अपनी खुशियों की नई-नई परिभाषाएं गढऩे पर मजबूर हो जाएं। शायद यही वजह है कि माघ महीना शुरू होने से पहले ही अपनी-अपनी सामाजिक व सांस्कृतिक परम्पराओं के साथ उन लाखों लोगों का भी यहां पहुंचना शुरू हो चुका है, जो कुछ दिनों के लिए इस तंबुओं की कुंभ नगरी को दुनिया की सबसे अधिक जनसंख्या वाली नगरी बनाएंगे।
वास्तव में हम मेलों को महज भीड़ का जमावड़ा ही समझते हैं। हमें लगता है कि यहां पहुंचने वालों के पास समय ही समय है। हम यह सोच ही नहीं पाते हैं कि ये लोग महीने भर धर्म और आस्था की डोर पकड़े जीवन और जीवन के बाद सुखी रहने की कवायद करने ही जुटे हैं। सच तो यह है कि संगम की रेती पर लगने वाले कुंभ में सोशल और लाइफ मैनेजमेंट के कारगर फण्डों से रू-ब-रू होने का मौका मिलता है। यहां आने वालों के लिए कई पण्डालों में योग का प्रशिक्षण चल रहा है तो कई में दुख और विषाद से उबरने के तरीके बताए जा रहे हैं। यहां मुरारी बापू का प्रवचन हो रहा है, तो स्वामी चिदानंद के शिविर में सोशल फण्डों से लोगों को लैस किया जा रहा है। कई शिविरों में विदेशी पर्यटकों को प्रकृति के साथ जुडक़र जीने की कला सिखायी जा रही है। कल्पवासियों को ऐसे टिप्स दिए जा रहे हैं जो अगले बारह बरस तक उन्हें जीने की कला से जोड़े रखेंगे। ये करोड़ों लोग कल्पवास यानी एक माह तक संगम के तट पर रहने के बहाने खुद को रिजुवनेट करने की कोशिश करते हैं। खुद को फिर से फिर से तरो-ताजा करने की यह कवायद टाइम मैनेजमेंट और माइंड मैपिंग के फण्डों से लैस होती है। अब देखिए न, कडक़ड़ाती ठंड में लगने वाले इस मेले में दुश्वारियों की कोई कमी नहीं होती, लेकिन मजाल है कि कल्पवास करने पहुंचने वाला कोई भी आपको शिकायत करता हुआ मिल जाए।
तंबुओं की इस नगरी का विहंगम दृश्य करोड़ों लोगों की आंखों में बस सा जाता है और शायद यही वजह है कि वे बारह वर्ष इसके फिर से बसने का इंतजार करते हैं और फिर बिना किसी निमंत्रण के यहां पहुंच जाते हैं। दुनिया के इस सबसे बड़े मेले की खास बातों में हमारी संस्कृति के वैविध्य का सहजता से उपस्थित होना भी शामिल है। एक सच यह भी कि कुंभ मेले के दौरान संगम की रेत का हर एक कण अनगिनत रचनाओं से हमारा सामना कराता है।  पग-पग पर मिलती रचनाएं देश-दुनिया के आर्टिस्टोंं को इस हद तक अट्रैक्ट करती हैं कि एक कुंभ इन आर्टिस्टों का भी यहां अनायास ही उपस्थित हो जाता है। फोक कल्चर का इतना बड़ा जमावड़ा दुनिया भर में और कहीं नहीं मिलता। यही वजह है कि यहां  दुनिया भर के रचनाकार, कलाकार और मीडियाकर्मी कुछ नया सहेजने की तलाश में जुटते हैं। यहां अनगिनत कहानियां रची जा रही हैं तो न जाने कितनी डाक्युमेंट्रीज बन रही हैं। कई रिसर्च प्रोजेक्ट पर काम हो रहा है  तो कई सर्वे भी। कुंभ इतिहास का यह पहला मौका है जब लाखों मोबाइल फोन कैमरे यहां के सुखद क्षणों की यादों के साथ-साथ वह सबकुछ सहेज ले रहे हैं, जो स्मृतियों में सहेजे जाने के लिए जरूरी होगा। आईटी के इस समय में कुंभ को इस बार सोशल मीडिया का साथ भी पहली बार मिल रहा है। तय है कि इंटरनेट पर तैरती फोटो और पोस्ट बहुत कुछ नया आभास देंगी।  
वास्तव में यहां कैनवास पर उकेरे जाते चित्र, कलमबद्ध होते यहां के आख्यान और कैमरों में कैद होते दृश्य इसकी सामाजिक व सांस्कृतिक परम्पराओं का दस्तावेज भर नहीं होते, बल्कि हमारे अपने समय का वह बड़ा सच होते हैं, जिसके सहारे हम आगे के रास्तों को मंजिल तक पहुंचाने का काम करते हैं। कुंभ मेला सिर्फ मेला भर नहीं होता वह हम सब को हर बारह बरस बाद जीवन के कुछ जरूरी अध्याय दोहरवाने के लिए आता है।