शनिवार, जनवरी 19

सुख शान्ति बनाम कुंभ में यज्ञ


धनंजय चोपड़ा
संगम की रेती पर यज्ञों का वैविध्य देखने को मिल रहा है। हर तरफ मंत्रोच्चार के साथ हवा में तैरते सुगंधित धुएं ने पूरे वातावरण को ऐसी अलौकिकता से भर दिया कि बस वहीं ठहर जाने का मन करता है। कहीं पारिवारिक सुख-शान्ति के लिए गृहस्थों के लिए हवन हो रहे हैं तो कहीं विश्व की सुख-शान्ति के लिए। पूरी कुंभ नगरी में हम यज्ञों की आहूतियों की दमक से रू-ब-रू   हो रहे हैं। अभी कई यज्ञ शालाएं इतनी आकर्षक ढंग से तैयार की जा रही हैं कि आप अपलक उन्हें देखते ही रह जाएं। यूं तो कुंभ नगरी पहले धर्म नगरी है और यहां यज्ञों की परम्परा का निर्वहन करना जरूरी कर्म है, लेकिन यज्ञों के उद्देश्यों से जुड़े विशेष प्रयोजन यज्ञों के प्रति उन्हें भी आकर्षित कर रहे हैं जो केवल कुंभ मेले को देखने-समझने पहुंचे हैं।
कुंभ नगरी के सेक्टर सात में विश्व शान्ति के लिए यज्ञ की तैयारियों में जुटे नेपाली बाबा कहते हैं ‘जीवन में जो यज्ञ नहीं करते वे सुखी नहीं हो सकते। यज्ञ हमारे जीवन के अभिन्न अंग होते हैं। जहां यज्ञ हो रहा हो, वहां जाने भर से पुण्य प्राप्त हो जाता है।’ नेपाली बाबा के परिसर में माघी पूर्णिमा के बाद श्रद्धालुओं का जुटना शुरू होगा। करीब एक लाख लोगों के यज्ञ में शामिल होने का अनुमान है। विशाल यज्ञशाला को तैयार किया जा रहा है। भोजन और रहने की व्यवस्थाएं में सैकड़ों लोग जुट गए हैं। बाबा का उदेश्य विश्व शान्ति और कल्याण है। यज्ञों का वैविध्य तलाशते हुए हम गंगा सेना के कैम्प में भी पहुंचे जहां हरित पर्यवरण का संदेश देने के लिए यज्ञ किया जा रहा है। यहां पांच लाख आहूतियां दी जाएंगी और बरास्ते यज्ञ लोगों को स्वच्छ पर्यावरण के लिए प्रेरित किया जाएगा।
वास्तव में रेत पर बसी कुंभ नगरी हमें पग-पग पर खुद के होने का अहसास कराती रहती है। चकर्ड प्लेट पर बने रास्तों से होकर गुजरते समय शायद ही जीवन का कोई पहलू बचा रह जाता है, जिससे हम रू-ब-रू होने से रह जाते हों। कुंभ नगरी में घूमते हुए मेरी मुलाकात मध्य प्रदेश के सतना जिले के एक गांव से आए एक परिवार से हुई। वे यहां दो मकसद लेकर आए हैं। पहला मकसद कुंभ स्नान और दान का पुण्य लाभ कमाना है और दूसरा यहां रहकर अपने घर के कष्टों से मुक्ति पाने के उपाय करना है। उनके पारिवारिक पुरोहित साथ में आए हैं, जो यहां के तीर्थ पुरोहितों के साथ यज्ञ आदि कराकर पूजन-अर्चन कराएंगे। स्नान-दान करने के बाद यह परिवार रेत पर बैठा पुरोहितों को पूजन की तैयारी करते देख रहा था। परिवार की महिलाएं खाना बनाने की तैयारियां भी कर रही थीं। इधर चूल्हे की आग जली और उधर में हवन कुण्ड में अग्नि प्रज्जवलित कर दी गई। चूल्हे की आग ने पेट की आग को बुझाने का प्रयास शुरू कर दिया तो यज्ञ की आग ने धर्म के सहारे कर्म के रास्तों में लगी आग को बुझाना। दोनों ही आग से निकल धुएं ऊपर उठते हुए एक साथ हो लिए। रेत पर जिन्दगी चलाते रहने का यह फलसफा कितना विश्वास दे जाता है, यह उस परिवार के हर सदस्य के चेहरे पर लगातार बढ़ते विश्वास की झलक को देखकर समझा जा सकता था। इन सबके रहने का कोई ठिकाना तय नहीं हो पाया है, लेकिन किसी के चेहरे पर कोई शिकन नहीं है। इन्हें यह कहते हुए सुनकर अच्छा लगा कि ठंड है तो क्या हुआ है। हम यह सब सोचकर और समझकर ही यहां पहुंचे हैं।
बहरहाल यह कुंभ नगरी भी आस्था को मार्केट के फण्डों के साथ चलाने में माहिर हो गई है। यही वजह है कि परेशानियों से निजात पाने के लिए होने वाले यज्ञों के पैकेज यहां उपलब्ध हैं। एक पुरोहित की माने तो एक साथ कई परेशानियों से जूझ रहे लोग हर परेशानियों से निजात पाने के लिए अलग-अलग यज्ञ कराने लगे तो उनका और उनकी जेब का कल्याण हो जाएगा। यही सोचकर यज्ञों के पैकेज तैयार किए गए हैं। एक बार में ही कई तरह के यज्ञों के विधान पूरे कर लेने का दावा करने वाले इन पैकेजों की खूबियां बहुत ही रोचक ढंग से बताते हुए मिलते हैं। मसलन बेटे की नौकरी और बिटिया की शादी की मनोकामना एक ही बार के हवन से पूरी हो सकती है। नौकरी की बाधाएं और पदोन्नति में रोड़े एक ही बार के यज्ञ से दूर हो सकते हैं। आदि-आदि। पैकेजों को देने वालों को परेशान लोग आसानी से पहचान में आ जाते हैं और परेशान लोग आसानी से इनके चंगुल में फंस भी जाते हैं। जो घर से परेशानियों का हल पाने ही निकला था, उसकी बात तो छोड़ दें, कई तो यहां पैकेजों के आकर्षण में तय कर लेते हैं कि चलो बहती गंगा का लाभ उठा ही लिया जाए।