गुरुवार, मई 29

कथाकार शेखर जोशी होने के मायने


कथाकर शेखर जोशी होने के मायने तलाशना अपने आप में सुख देने वाला रहा। इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘अनहद’ के शेखर जोशी विशेषांक को पलटते हुए हर बार यही लगा कि मैं एक ऐसे जीवन से साक्षात्कार कर रहा हूं, जिसने संघर्षों के साथ रास्ते तय करते हुए कभी शिकायत की ही नहीं। सच तो यह कि हमें गर्व इस बात का कि हम उस समय में हैं जब हमारे साथ वे हैं और रचनाएं कर रहे हैं। सहज और सरल व्यक्तित्व के धनी शेखर जी ने जितना लगाव अपने पीछे आने वाली पीढिय़ों को दिया है, शायद ही किसी रचनाकार ने दिया हो।
सन 1950 के बाद जिन कहानीकारों ने शिल्प और संवेदना के अन्तर्सम्बन्धों को अपने रचनाकर्म में स्थान देकर सीधे समाज से जुडऩे का प्रयास किया और आजादी की लड़ाई के दौरान के आदर्शवाद को लेकर चलने का साहस दिखाया उनमें कथाकार शेखर जोशी का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। 10 सितम्बर 1934 को अल्मोड़ा जिले के ओलिया गांव में जन्मे शेखर जोशी ने रेणु, मार्कण्डेय और शिवप्रसाद सिंह की ही तरह आंचलिक पृष्ठभूमि पर ग्रामीण जीवन का बखूबी अंकन किया है। ट्रेड यूनियनों से गहरे सम्पर्क के कारण शेखर दादा की कहानियों में श्रम के प्रति गहरा सौन्दर्य और विचार दिखाई देता है। पहली कहानी ‘दाज्यू’ 1953 में दिल्ली से निकलने वाले पत्र पर्वतीय जन के वार्षिकांक में छपी थी। और, तब से लेकर आज तक अनगिनत रचनाएं कर चुके शेखर जी ने अपने समय की दुरूहताओं और सामाजिक बवंडरों से मुठभेड़ करते हुए ऐसी कई रचनाएं दी हैं, जो रचनाकारों के लिए किसी पाठशाला से कम नहीं हैं।
अनहद के इस अंक में शेखर जोशी पर संस्मरण, उनके साक्षात्कार, उनके परिवारी की टिप्पणी, उनकी कविता तो है ही उनके रचनाकर्म की पड़ताल करती समालोचना भी शामिल है। नाटक, सिनेमा और शेखर जोशी की कहानी, शेखर जोशी और आज के कहानीकार, युवा आलोचकों की नजर में शेखर जोशी, नयी कहानी आंदोलन और शेखर जोशी, शेखर जोशी के पत्र और चित्रवीथिका शीर्षक से उनके होने के मायनों को तलाशने की जुगत बड़ी ही महत्वपूर्ण है। जिन लेखकों ने इस जुगत में अपनी भागीदारी निभाई है, उनमें सतीश जमाली, प्रणय कृष्ण, भाल चन्द्र जोशी, नीलकांत, स्वयं प्रकाश, सूरज पालीवाल, हरीश चन्द्र पाण्डेय, अनिल रंजन भौमिक, अल्पना मिश्र, प्रियम अंकित, मनोज रूपड़ा, कैलाश बनवासी आदि शामिल हैं।
संपादक संतोष कुमार चतुर्वेदी की यह टिप्पणी मायने रखती है कि ‘इक्का-दुक्का रचनाकारों को छोडक़र प्राय: वे सभी रचनाकार शेखर जी पर लिखने को तैयार हो गए, जिनसे मैंने सम्पर्क किया। क्या बुजुर्ग, क्या युवा, वे सबके पसंदीदा हैं, अजातशत्रु हैं।’ वास्तव में शेखर जोशी हर पीढ़ी के लिए प्रिय रचनाकार तो हैं ही, वे बड़ी ही संवेदना के साथ सबके साथ जुड़े भी हैं। मैं इस बात का कई बार साक्षी रहा हूं कि उनसे मिलने शहर बाहर से कोई भी रचनाकार आता है तो वे इस गर्म जोशी से मिलते हैं कि वह बार-बार उनके पास आना चाहे। ‘अनहद’ के इस प्रयास की जितनी भी सराहना की जाए वह कम है। संपादक व उनकी टीम को बधाई।