मंगलवार, जुलाई 22

मतवाला, खिचरी और महामना की ससुराल

पिछले दिनों अपनी लोक यात्रा के दौरान मैं मिर्जापुर में था। बहुत दिनों बाद मैं एक ऐसे शहर में था, जिसके पास विरासत में सहेजने को बहुत कुछ है, लेकिन वर्तमान में सिवाय जूझने के कुछ भी पास में नहीं। सच कहूं तो एक शहर के फक्कड़ पन के कई रूप हमारे सामने थे। अब देखिए न, सड़कें थीं, पर लगता रहा कि अगर ये न होतीं तो शायद अधिक बेहतर होता। किसी भी तरह से उन्हें पार करने की कोशिश काजिए, आपकी आंतें हिल जाने की गारंटी है। लोग हैं कि अपनी मस्ती में जिए जा रहे हैं। किसी को इन सड़कों से कोई शिकायत ही नहीं। फक्कड़ी का एक अंदाज सुबह-सुबह घाट किनारे भी दिखा। यहां जुटने वालों की दुनिया सबसे न्यारी लगी। लोगों का नदी और उसके तटबंधों से जुडऩे का मतवालापन देखते ही बना। नदी किनारे साढिय़ों पर बना-बसा 'लेडीज मार्केटÓ बार-बार अल्मोड़ा की मार्केट की याद दिलाता रहा। वह भी सीढिय़ों पर बना-बसा है। फर्क बस इतना है कि वहां की साढिय़ां पहाड़ के शीर्ष तक ले जाती हैं और यहां की साढिय़ां नदी के किनारे तक। मंदिरों के कपाट हमारी कलाओं की विरासत के अद्भुद नमूने दिखा रहे थे। कुछ लोग दीन-दुनिया से परे बंदरों के झुंड  को आम खिलाने में मस्त थे। यह सब हमारे सामने किसी पहले से तैयार स्क्रिप्ट की तरह था।
बहरहाल हम अपनी लोक यात्रा यानी लोक कलाओं को सहेजने की जुगत में यहां पहुंचे थे। 'कजरीÓ लोकगीत से जुडऩे, सहेजने और उसे डिजिटाइज्ड करने के दौरान मिर्जापुर की सांस्कृति व साहित्यिक विरासत से भी साक्षात्कार होता जा रहा था। मैं और मेरे सहयोगी अमित कजरी लोग गायकों की खोज में निकल पड़े। कजरी गायन की पर्याय मैना देवी के घर पर उनके  देवर हरिलाल से मुलाकात हुई तो हम इन दिनों की प्रख्यात गायिकाओं उर्मिला श्रीवास्तव और अजीता श्रीवास्तव से भी मिले। दिन भर के बाद हमारी मुलाकात प्रख्यात लेखक स्व. भवदेव पाण्डेय के पत्रकार पुत्र सलिल पाण्डेय से हुई और वे स्वेक्षा से हमारे संग हो लिए। उनका संग होना था कि हमारे सामने मिर्जापुर की विरासत के कई महत्वपूर्ण पृष्ठ अनायास ही खुल गए। हमारी इस लोक यात्रा के बीच ही 'मतवालाÓ प्रेस की पुरानी बिल्डिंग भी आ गई। हम वहां भी पहुंचे जहां निराला, उग्र और महादेव प्रसाद सेठ की बैठकें होतीं थीं और मतवाला की रूपरेखा तय होती थी। महादेव प्रसाद के प्रपौत्र ने हमें बताया कि प्रेस वाला हिस्सा उन्होंने बेच दिया है। उग्र जी जिस कमरे में रहते थे, वह कमरा अभी जस का तस है। अद्भुद अनुभूति थी उस स्थान पर पहुंच कर।
थोड़ा आगे बढऩे पर तिरमुहानी चौराहे पर हमें 'खिचरी समाचार प्रेसÓ दिखी। छोटी सी परचून की दुकान के ऊपर दीवार पर ही उभर हुए अक्षरों में लिखा हुआ  'खिचरी समाचार प्रेसÓ अपने आप में बहुत ही गौरवशाली इतिहास समेटे हुए है। यहीं से 1888 में महादेव प्रसाद घवन ने 'खिचरीÓ अखबार निकाला था। रोचक यह कि यह अखबार हिन्दी, उर्दू और अंग्रेजी, तीनों भाषाओं में होता था। आज घवन साहब की पुश्तों के पास परचून की दुकान के साथ-साथ उनकी यादें हैं, जिसे वे हमेशा सहेज लेने को आतुर रहते हैं। मेरे कहने पर उन्होंने खिचरी की कुछ प्रतियां दिखाईं और आग्रह किया कि कुछ ऐसे हो कि इन्हें लोग पढ़ें और महादेव प्रसाद घवन के योगदान को याद रखें। यूं तो मिर्जापुर की विरासत के कई पृष्ठ हमने खेंगाले, लेकिन एक और जिक्र अवश्य करूंगा। वह है महामना मदन मोहन मालवीय की ससुराल का। धुंधी का कटरा इलाके में एक छोटे से मकान के बाहर शिलापट्ट लगा हुआ है कि यह महामना की ससुराल है। पीतल के बर्तन बनाने वालों के इस इलाके में देश की शिक्षा, पत्रकारिता और राजनीति दिशा तैयार करने वाले महापुरुश की ससुराल होना वहां के लोगों को गर्व का अहसास कराता है। हमने जिससे भी उस गली का पता पूछा, उसने बहुत ही आत्मीयता के साथ उस ओर जाने का रास्ता बताया।
बहरहाल कुछ बनारस सी तासीर रखने वाले  इस शहर के लोगों  के लोग अपनी संस्कृति और सामाजिकता की बात करते हुए अपनी परेशानियां भूले रहने की कोशिश करते हैं। हां यह जरूर कहते हैं कि 'फूलन देवी से लेकर अनामिका पटेल तक जितने भी सांसद यहां से हुए किसी ने कुछ नहीं किया। हमने अब मांगना ही छोड़ दिया। अब कोई कुछ पहल करे तो अच्छा और न करे तो भी अच्छा।Ó शहर में प्रदेश के एक मंत्री के जनसम्पर्क कार्यालय का बहुत विशाल सा बोर्ड न जाने क्यों बार-बार आंखों के आगे आ जाता है, जिसमें लिखा है- अपनी परेशानियां हमें अवश्य बताएं। अब जिन्हें शहर के हालात दिखते नहीं, उन्हें बताए कौन।