सोमवार, जुलाई 7

वे जो विज्ञान, कला और साहित्य की त्रिवेणी थे


उनके हिस्से में कई महत्वपूर्ण वैज्ञानिक शोध हैं, जिनपर आज हम गर्व कर सकते हैं। उनकी कई साहित्यिक कृतियां हैं, जो हमारे लिए किसी धरोहर और प्रेरणा से कम नहीं हैं। उनकी कलाकृतियां, युवा कलाकारों के लिए किसी जरूरी अध्याय से कम नहीं। उनके लिखे नाटकों से आज भी रंगमंच गुलजार रहता है। सच कहा जाए तो वे विज्ञान, कला और साहित्य की त्रिवेणी थे। हां, वे अपने प्रो. बिपिन कुमार अग्रवाल थे।
प्रो. बिपिन कुमार अग्रवाल देश के जाने-माने भौतिकविद् थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के भौतिक विभाग में पढ़ाई, शोध और फिर अध्यापन के दौरान उन्होंने एक्स-रे, पार्टिकिल फिजिक्स, लिक्विड हीलियम और क्वांटम मिकैनिक्स जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर उन्होंने शोध कार्य किया। वे विभागाध्यक्ष और विज्ञान संकाय के डीन भी रहे। भौतिकी के विभिन्न विषयों पर लिखी आपकी कई पुस्तकों के कई-कई संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। इनमें क्वांटम फिजिक्स और स्टेटिस्टिकल मिकेनिक्स पर लिखीं पुस्तकें महत्वपूर्ण हैं। प्रो. अग्रवाल अपने सहयोगियों और विद्यार्थियों के बीच बहुत लोकप्रिय थे। उनकी सदाशयता व विद्वता का बखान करने वाले विद्यार्थी देश-विदेश में विभिन्न महत्वपूर्ण संस्थानों में बड़े पद पर कार्यरत मिल जाया करते हैं।
बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी प्रो. अग्रवाल की रुचि शुरू से ही साहित्य सृजन और चित्रकला में भी रही। उन्होंने हिन्दी साहित्य जगत को कई महत्वपूर्ण कृतियों से समृद्ध किया है। इनमें छह कविता संग्रह-धूप की लकीरें, नंगे पैर, इस धरती पर, आदिहीन अनंत यात्रा, आकारहीन संसार एवं ढूंढ़ा और पाया, दो नाटक संग्रह-तीन अपाहिज एवं खोए हुए आदमी की खोज तथा लोटन नाटक, तीन निबंध संग्रह-आधुनिकता के पहलू, सृजन के परिवेश एवं कविता, नाटक तथा अन्य कलाएं और एक उपन्यास-बीती आप बीता आप शामिल हैं। ग्यारह बार उनकी चित्रकला की कृतियों की प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। यह प्रदर्शनी इलाहाबाद, लखनऊ और दिल्ली में ही नहीं, बल्कि न्यूयार्क में भी आयोजित हुई। उनकी इस सृजन यात्रा के विभिन्न आयामों पर शोध कार्य भी हुए हैं और हो रहे हैं।
इसी आठ जुलाई को प्रो. बिपिन कुमार अग्रवाल की पचीसवीं पुण्यतिथि है। हम उन्हें स्मरण करते हुए सृजन परिवेश का ताना-बाना बुनने वालों की ओर से भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। इस संदर्भ में देश में हिन्दी में विज्ञान के प्रचार-प्रसार में जुटी प्रमुख संस्था विज्ञान परिषद ने एक पुस्तक का प्रकाशन किया है, जिसका विमोचन आठ जुलाई को ही होना है। इस पुस्तक का सम्पादन प्रो. शिव गोपाल मिश्र व डा. बबिता अग्रवाल ने किया है। अपने महत्वपूर्ण प्रकाशन ‘विज्ञान पत्रिका’ का शताब्दी वर्ष मना रही विज्ञान परिषद की यह पहल स्वगात योग्य तो है ही, यह हमें अपने समय में कुछ नया करने और अपनी विरासत से जुडऩे का अवसर भी देती है।