रविवार, जनवरी 25

सैंया भये कोतवाल तो.. ..


‘अक्कड़-बक्कड़ बम्बे बोल, अस्सी नब्बे पूरे सौ, सौ में लगा धागा, चोर निकल के भागा’ इसी के साथ शुरू होता था बच्चों का एक खेल जिसमें हम ही चोर थे और हम ही पुलिस। भले ही चोर-पुलिस का यह खेल अब की पीढ़ी के खाते से बाहर हो गया हो, लेकिन अपने शहर में ऊंचे स्तर पर चोर-पुलिस का खेल चालू है। ठीक उसी पुरनिया पड़ गये खेल की तर्ज पर चोर-पुलिस एक ही घर या मोहल्ले के निकल रहे हैं और ठीक-ठीक उसी तरह खेल रहे हैं। अब जरा इमेजिन कीजिये कि पुलिस के घर पुलिस पहुंचे और चोर को पकड़ ले, चोर पुलिस वाले का बेटा या भाई निकले.. .. क्या सीन है भाई, एकदम फिल्मी।
अब देखिए न, पिछले दिनों एक ही घर और मोहल्ले से पुलिस और चोर दोनों के साथ-साथ  के होने की खबर मिली। इस खबर ने एक प्रसिद्ध कहावत को तो चरितार्थ होने का मौका भी उपलब्ध करा दिया। चरितार्थ होने का सुख पाने वाली कहावत यह कि जब सैंया भये कोतवाल तो डर काहे का। अब सैंया न सही लेकिन पिता और भाई पुलिस में हों तो चोरी-छिनैती का सुख उठाने में काहे का डर। हां, यह बात भी दीगर है कि पुलिस वाले रिश्तेदार हों तो जेल की हवा खाने का भी अपना अलग ही मजा है। अब जब पुलिस के घर में चोर रह सकते हैं तो पुलिस को सैंया मान लेने की कवायद में पुलिस लाइन में रहने वाले कहां पीछे रह सकते हैं।  इस तर्क को साबित किया पुलिस लाइन में रहने वाले एक चेन स्नेचर ने।
वैसे अपने शहर में चोरों की वैराइटीज में लगातार इजाफा होता जा रहा है। पिछले दिनों जब एटीएम चोर की नई वैराइटी सामने आयी थी तो कई लोग चौंक गये थे। इस बार ट्रैक्टर चोर की वैराइटी मिली है। इस वैराइटी ने जिस तरह टवेरा और ट्रैक्टर की जुगलबंदी का सच उगला है, वह चौंकाने वाला तो है ही साथ ही चोरी के क्षेत्र में हो रहे इनोवेटिव प्रयोगों की पोल भी खोलता है। .. ..कौन कहता है कि इस सदी के अगले इनोवेटिव आइडियाज वाले दशक में हम पीछे रहेंगे। हां इसके लिए शहर हो तो मेरे शहर जैसा, जहां के चोर भी हमेशा नया-नया सृजन करने में लगे रहते हैं।